काल भैरव पूजा विधि kalashtami Date Time Shubh Muhurat 2020
कालाष्टमी व्रत शुभ मुहूर्त 2020 kalashtami Date Puja Shubh Muhurat 2020
- साल 2020 बैशाख माह में कालाष्टमी का व्रत 14 अप्रैल मंगलवार के दिन रखा जाएगा.
- बैशाख कृष्णा अष्टमी शुरू होगी 14 अप्रैल मंगलवार शाम 04:11 मिनट पर|
- अष्टमी तिथि समाप्त होगी – 15 अप्रैल शाम 04:51 मिनट पर |
कालाष्टमी काल भैरव जयंती पूजा विधि Kaal Bhairav Jayanti 2020
कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के पांचवें अवतार काल भैरव का जन्मदिवस मनाया जाता है शास्त्रों के आज ही के दिन इनकाजन्म हुआ था अनुसार इसकी पूजा रात्रि में की जाती हैं. भैरव बाबा को तांत्रिक देवता भी कहा जाता है इसीलिए इनकी पूजा रात में करने का विधान है. अष्टमी तिथि के दिन स्नान-ध्यान के बाद भगवान भैरवनाथ को अबीर, गुलाल, चावल, फूल और सिंदूर चढ़ाये और उनकी कृपा पाने के लिए नीले रंग के पुष्प पूजा में अर्पित करे इसके बाद भैरव नाथ की व्रत कथा पढ़े. मान्यता है की इस तरह विधि विधान के साथ की गयी पूजा के फलस्वरूप व्यक्ति की मनोकामना तो पूरी होती ही है साथ ही इनकी पूजा करने से किसी चीज़ का भय नहीं रहता और जीवन में समृद्धि आती है.
सफलता प्राप्ति के 5 महाउपाय Kalashtami Upay
- कालाष्टमी के दिन यदि भगवान शिव की पूजा की जाय तो भगवान भैरव नाथ का आशीर्वादअवश्य मिलता है, क्योंकि भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश के रूप में हुई थी।
- आज के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। इससे भगवान भैरव प्रसन्न होकर भक्तो को सफलता और आपकी मनोकामनाएं पूरी करते है.
- कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव को सिंदूर, सरसों का तेल, नारियल, चना, इनमे से कोई भी चीज चढ़ाये.
- काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए कालाष्टमी के पावन के दिन भगवान भैरव नाथ की प्रतिमा के आगे सरसो के तेल का दीपक जलाएं.
- कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को मीठी रोटी बनाकर खिलाने से न सिर्फ भगवान भैरव नाथ बल्कि शनिदेव की भी कृपा भी प्राप्त होती है.
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कालाष्टमी काल भैरव कथा Story of Kaal Bhairav
प्राचीन कथाओ के अनुसार एक बार विष्णु और ब्रह्मा जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद को समाप्त करने के लिए महादेव ने सभा बुलाई. जिस सभा में सभी ऋषि-मुनि और महात्मा पधारे. कथाओं के अनुसार शिव ने इस सभा में जो निर्णय लिया वह सभी को मान्य था. लेकिन ब्रह्माजी शिव के इस फैसले से खुश नहीं हुए और उन्होंने भगवान शिव का बहुत अपमान कर दिया। इस अपमान से क्रोधित होकर शिव ने अपना रूद्र रूप धारण कर लिया भगवान शिव द्वारा लिया उनका यह रौद्र रूप ही कालभैरव कहलाया. भगवान शिव ने क्रोध में आकर ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया बस तभी से भगवान शिव के कालभैरव रूप की पूजा की जाने लगी.