तुलसी विवाह विधि Tulsi Vivah Kab Hai
Tulsi Vivah Date Time 2023 पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है. कई लोग कार्तिक द्वादशी के दिन तुलसी विवाह कराते है. प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ तुलसी विवाह सम्पन्न होता है. मान्यता है की देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर से चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं| भगवन विष्णु को तुलसी सबसे प्रिय है इसीलिए कहते है की जब भगवान निंद्रा से जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना वो हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं| आइये जानते है साल 2023 में तुलसी विवाह कब किया जायेगा, तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, तुलसी विवाह विधि और व्रत कथा क्या है|
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त 2023 Tulsi Vivah date 2023
- साल 2023 में तुलसी विवाह 24 नवंबर शुक्रवार को द्वादशी के दिन किया जायेगा|
- द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी – 23 नवंबर रात्रि 09:01 मिनट पर|
- द्वादशी तिथि समाप्त होगी – 24 नवंबर सायंकाल 07:06 मिनट पर|
- तुलसी विवाह के लिए अभिजीत मुहूर्त – 24 नंवबर शुक्रवार की सुबह 11:43 मिनट से दोपहर 12:26 मिनट|
- विजय मुहूर्त – 24 नवंबर शुक्रवार की दोपहर 1:54 मिनट से दोपहर 2:38 मिनट|
तुलसी विवाह पूजा विधि Tulsi Vivah Pujan Vidhi
शास्त्रों के अनुसार देवउठनी एकादशी और द्वादशी के दिन तुलसी जी का विवाह भगवान् विष्णु के सालिग्राम रूप के साथ कराया जाता है. इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. अब तुलसी के गमले पर गन्ने का मंडप बनाकर वहां पर कलश की स्थापना करे. इसके बाद तुलसी को लाल चुनरी ओढ़ाकर श्रृंगार की सभी सामग्री अर्पित करे. तुलसी के गमले के पास घी का दीपक जलाएं और तुलसी को रोली व शालिग्राम को चंदन का टीका लगाएं. अब हाथ में शालिग्राम जी को लेकर तुलसीजी की सात बार परिक्रमा करें. इसके बाद भगवान विष्णु और तुलसी जी की आरती उतार कर भोग लगाएं. मान्यता है की इसी दिन भगवान विष्णु नींद से जागते है जिसके बाद सभी तरह के शुभ व मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुवात होती है.
तुसली विवाह मान्यता Tulsi Vivah Manyta
प्राचीन मान्यता अनुसार ऐसा कहा जाता है की जो लोग देवउठनी एकादशी पर शालिग्राम और तुलसी विवाह कराते है उन्हें कन्यादान के बराबर का ही फल प्राप्त होता है. शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी और द्वादशी दोनों ही तिथियां शुभ मानी जाती है. मान्यता है की जिस घर में बेटियां नहीं होती उन्हें तुलसी विवाह कराने पर कन्यादान के सामान फल प्राप्त होते है.
तुलसी विवाह कथा Tulsi Vivah Katha
प्राचीन कथा के अनुसार जलंधर नाम का एक राक्षस बहुत पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। इसी कारण वह विजयी हुआ था। जलंधर के उदण्डों से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। सभी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने जलंधर की शक्ति को खत्म करने के लिए देवी वृंदा का पतिव्रत भंग करने का निश्चय किया और जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया जिसके प्रभाव से जलंधर, देवताओं से परास्त हुआ।
जब वृंदा को भगवान श्री हरि के छल का पता चला, तो वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला हो जाने का श्राप दे दिया. भगवान विष्णु का पूरा शरीर पत्थर के समान होने लगा और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। यह देखकर देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना कि वे अपना श्राप वापस ले लें। वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और जालंधर के साथ सती हो गई। जहाँ वृंदा सती हुई वह तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ तब भगवान विष्णु ने कहा की वृंदा तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे प्रिय होगी और सदा मेरे साथ रहोगी. जो मनुष्य कार्तिक एकादशी को मेरे शालिग्राम स्वरुप के साथ तुम्हारा विवाह कराएगा उसकी सभी मनोकामना पूरी होगी.