वट सावित्री व्रत क्यों दो बार रखा जाता है जानें कारण Vat Savitri Vrat

वट सावित्री व्रत Vat Savitri Vrat

Vat Savitri VratVat Savitri Vrat ज्येष्ठ मास के महीने में वाने वाला वट सावित्री व्रत सभी प्रमुख व्रतों में से एक माना जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। सुहागन महिलाओ द्वारा रखा जानें वाला यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या और ज्येष्ठ मास की ही पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता है। इसकी पूजा-विधि व महत्व एक समान हैं। लेकिन क्या आप जानते है की ज्येष्ठ माह में 15 दिन के अंतराल में दो बार वट सावित्री व्रत क्यों रखा जाता है| आइये जानते है है इसके पीछे का कारण क्या है|

वट सावित्री व्रत कब, कहाँ रखा जाता है

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को पहला वाट सावित्री व्रत और ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को दूसरा वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. यानि एक ही महीने में 15 दिन के अंतराल में दो बार एक ही व्रत किया जाता हैं. ज्येष्ठ अमावस्या का वट सावित्री व्रत को खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में रखने प्रचलन है तो वही ज्येष्ठ पूर्णिमा का वट सावित्री व्रत मुख्यत: महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत समेत कई क्षेत्रों में रखा जाता है.

क्या है इसका कारण

वट सावित्री व्रत की कथा अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से तीन वरदान मांगे थे. सबसे आखिरी व तीसरे वरदान में सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों की माता होने का वरदान माँगा जिस कारण यमराज को सत्यवाण के प्राण लौटाने पड़े थे. कहा जाता है कि जिस दिन यमराज ने सत्यवाण के प्राण लौटाए थे वह ज्येष्ठ अमावस्या का दिन था. इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या पर महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं

कुछ मतानुसार भारत में अमानता व पूर्णिमानता दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं। हालांकि इन दोनों में कोई और फर्क नहीं बस तिथि का फर्क है। पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है जिसे वट सावित्री अमावस्या कहते हैं जबकि अमानता कैलेंडर के अनुसार इसे ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत कहते हैं।

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत अमावस्या और पूर्णिमा में कोई खास अंतर नहीं है। इन दोनों दिनों पर सुहागिन महिलाएं वट अर्थात बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और वृक्ष की परिक्रमा कर रक्षा सूत्र बांधती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश वास करते हैं। ऐसे में वट सावित्री व्रत रखने से पति की अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है और घर में सुख समृद्धि आती है.

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