वट सावित्री व्रत पूजा विधि Vat Savitri Vrat Puja Vidhi
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त 2022 Vat Savitri Vrat Shubh Muhurat 2022
- साल 2022 में वट सावित्री का व्रत 30 मई सोमवार के दिन रखा जाएगा|
- अमावस्या तिथि प्रारम्भ होगी – 29 मई दोपहर 02:54 मिनट पर|
- अमावस्या तिथि समाप्त होगी- 30 मई शाम 04:59 मिनट पर|
- सर्वार्थ सिद्धि योग होगा – सुबह 07:12 मिनट पर|
- अभिजीत मुहूर्त होगा – दोपहर 11:51 मिनट से दोपहर 12: 46 मिनट तक|
वट सावित्री पूजा सामाग्री Vat savitri puja samagri
वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सावित्री-सत्यवान की प्रतिमाएं, बांस का पंखा, लाल कलावा, मौली या कच्चा सूत, लाल वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए, धूप-दीप, घी-बाती, फल-फूल, कुमकुम, सुहाग का सामान, पूरियां, भीगे चने, बरगद की टहनी और जल से भरा हुआ कलश चाहिए.
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वट सावित्री पूजा विधि Vat Savitri Vrat Puja Vidhi
ज्येष्ठ मास वट सावित्री व्रत के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान के बाद सोलह श्रृंगार कर व्रत का संकल्प ले और पूजास्थल में धूप दीप जलाकर पूजा करे. इस दिन वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व है इसीलिए सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर वट वृक्ष की पूजा करे. वट वृक्ष के नीचे सफाई कर सावित्री सत्यवान की प्रतिमाये रखे. अब वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर कुमकुम, अक्षत, पूरियां, बरगद फल अर्पित करें इसके बाद घी के दीपक जला ले. अब सूत के धागे को वट वृक्ष के पांच, सात या बारह चक्कर लगाते हुए लपेटकर बांध ले. हर परिक्रमा पर एक-एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं।
अब हाथ में काला चना लेकर व्रत कथा पढ़े अथवा सुने. पूजा के बाद भीगे हुए चनों का बायना निकालकर अपनी सास को दे और उनका आशीष ले. बांस के पंखें से पति को हवा करें और उनका भी आशीर्वाद लें. अंत में ब्राह्मणों को दान कर व्रत पूरा करना चाहिए. पुराणों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवताओं का वास माना गया है। वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को जीवित किया था इसीलिए इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन और व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व Vat savitri mahtva
Vat Savitri Puja 2022 Kab Hai धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत विवाहित महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य के लिए रखा जाता है। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस व्रत को सावित्री से जोड़ा गया है। मान्यता है कि देवी सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकरआईं थी। इस व्रत में सुहागन महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए इस व्रत को निर्जल रहकर पूरा करती है ताकि उनके पति को सुख-समृद्धि, बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त हो सके। यह व्रत से संतान प्राप्ति के लिए भी खास महत्व रखता है.