वट सावित्री व्रत कथा Vat Savitri Vrat Katha Vat Savitri Puja Vidhi

वट सावित्री की कहानी Story of Vat Savitri  

Vat Savitri Vrat kathaVat Savitri Vrat Katha वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है. इस दिन सुहागन महिलाये व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा कर वृक्ष पर कच्चा सूत लपेटती है साथ ही सावित्री सत्यवान की व्रत कथा पढ़ती अथवा सुनती है मान्यता है की इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक रखने से महिलाओ को अखंड सौभाग्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.

वट सावित्री व्रत 2022 पूजा मुहूर्त Vat Savitri Puja Ka shubh Muhurat

वट सावित्री व्रत की पूजा का अमृत व अभिजीत मुहूर्त होगा रविवार प्रातःकाल 10 बजकर 34 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट

वट सावित्री व्रत पूजा विधि Vat Savitri Puja Vidhi

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जागकर संपूर्ण घर एवं पूजाघर को स्वच्छ करे स्नान आदि के बाद उपवास का संकल्प ले सोलह श्रृंगार करे सूर्योदय सूर्य देव को जल अर्पित करे. पूजास्थल पर अखंड जोत प्रज्वलित करे, बरगद के पेड़ पर सावित्री सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखे बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमे पुष्प, अक्षत, रोली, कुमकुम, लाल फूल, फल और पंच मेवा पंच मिठाई. पान सुपारी चढ़ाये. माता सावित्री को सोलह श्रृंगार अर्पित करे. घी के दीपक से आरती करे. बरगद के वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगे. वृक्ष की सात बार परिक्रमा करे. इसके बाद हाथ में काले चने लेकर व्रत कथा सुने कथा सुनाने के उपरान्त ब्राह्मण को अन्न वस्त्र व माता सावित्री को अर्पित किया हुआ श्रृंगार व भेंट दान करे.

आइये सुनते है वट सावित्री व्रत के दिन सुनी जाने वाली सावित्री सत्यवान की पौराणिक कथा|

पौराणिक कथा अनुसार प्राचीन काल में अश्वपति नाम के राजा राज्य करते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक यज्ञ, हवन और दान-पुण्य किए. जिसके बाद उन्हें एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति हुई. राजा ने कन्या का नाम सावित्री रखा. सावित्री जब विवाह योग्य हुई तो राजा ने कन्यादान करने का विचार किया.

Vat Savitri Vrat Katha राजा ने सावित्री को अपने लिए सुयोग्य वर खोजने का भर सौंप दिया. पिता की बात मानकर सावित्री वर की तलाश में चल दी और एक जंगल में पहुंची जहाँ उसने एक सुंदर युवक को देखा और उसे अपना पति मान लिया. उस युवक का नाम सत्यवान था. जो अपने अंधे माता पिता के साथ रहता था. सत्यवान के राज्य को शत्रुओ ने छीन लिया था जिसके बाद वह जंगल में रहने लगा था.

महल पंहुच कर यह बात सावित्री ने अपने पिता को बताई तब नारद जी भी वह थे और सावित्री की बात जानकर नारद जी ने राजा से कहा कि सावित्री ने अपने पति के रूप में जिस युवक को स्वीकार किया है, वह गुणी, बलवान और पवित्र है. लेकिन उसकी उम्र बहुत कम है. महर्षि नारद की बात सुनकर राजा अपनी पुत्री के भविष्य को लेकर चिंतित रहने लगे. उन्होंने राजकुमारी से कहा कि कोई दूसरा वर खोजे ले, क्योंकि सत्यवान की उम्र बहुत कम है.

तब सावित्री ने कहा- “आर्यन लड़कियां अपना पति सिर्फ एक बार चुनती हैं.”  सावित्री के कहने पर राजा ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया. जिसके बाद सावित्री ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में लग गई. इस तरह समय बीतता गया. नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था, उससे पूर्व सावित्री उपवास करने लगीं. जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन निश्चित था, उस दिन वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगे, तो सावित्री भी उनके साथ वन में गईं.

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सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, तभी उसके सिर में तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया. उसी समय सावित्री ने यमराज को आते देखा. यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे. तब सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल दी. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश वह नहीं मानी. कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे पीछे चली आ रही हैं, तो उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान से तुम्हारा साथ यही तक था अब तुम वापस लौट जाओ.

सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति जाएंगे, मैं भी जाउंगी. यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से प्रसन्न हुए और उन्होंने सावित्री से वर मांगने को कहा सावित्री ने अपने अंधे सास ससुर की आंखे और उनका खोया राज पाठ वापस मांग किया यमराज ने तथास्तु कहा और आगे चल दिए. कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही हैं, तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने सत्यवान के 100 पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा.

अपने वचन से बंधे यमराज ने सावित्री को 100 पुत्रों की माता होने का वरदान दे दिया. सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े।

इसके बाद सावित्री उसी वृक्ष के नीचे गई जहाँ सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था. सत्यवान जीवित हो उठे माता पिता को दिव्या ज्योति प्राप्त हुई और उनका राज उन्हें वापस मिल गया इस प्रकार सावित्री सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे. माता सावित्री की कहानी हमें दृण संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति और ईश्वर पर अटूट आस्था बनाये रखना व विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य ना खोने की प्रेरणा देती है

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