सावन सोमवार व्रत कथा Sawan Somwar Vrat Katha Sawan Maah Ki Kahani

सावन सोमवार की कहानी Sawan Somwar katha kahani 

Sawan Somwar Vrat Katha Sawan Somwar Vrat Katha  सावन का महीना भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय है। साल 2021 में सावन महीने की शुरुआत 25 जुलाई से हो रही है सावन महीने के सोमवार मनोकामना पूरी करने वाले माने जाते है कहते है की इस माह भगवान शिव और मां पार्वती की एक साथ पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है. शास्त्रों के अनुसार जो कोई सावन माह में व्रत रखकर विधिवत पूजा और सावन सोमवार की व्रत कथा का पाठ करता है तो भगवान् शिव उसकी सभी मनोकामना पूरी करते है तो आइये जानते है सावन सोमवार व्रत कथा|

सावन माह की कहानी  Sawan maah ki katha kahani 

Sawan Somwar Vrat Katha  एक समय की बात है किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इसी कारण वह बहुत दुखी रहता था. पुत्र पाने के लिए वह प्रत्येक सोमवार को वह व्रत रखता और श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती जी की पूजा करता था. उसकी भक्ति को देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने को कहा. पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने को कहा|

Sawan Somwar Vrat Katha  माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी. माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था ईसीए उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख. वह पहले की तरह ही शिवजी की पूजा करता रहा. कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ जब बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो साहूकार ने उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया. साहूकार ने अपने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए उन्हें दक्षिणा देते जाना.

Sawan Somwar Vrat Katha  दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े. रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था और जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था. राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची. साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया और उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसे धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा. लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था. उसे यह बात सही नहीं लगी और उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है

Sawan Somwar Vrat Katha  लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है. मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं. जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई. दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया. जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया. लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मामा ने कहा तुम अंदर जाकर सो जाओ. शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए.

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Sawan Somwar Vrat Katha  भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू कर दिया. संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे. पार्वती ने भगवान शिव से कहा- की स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे है. आप इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें.जब शिवजी बालक के समीप गए तो बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया. अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है, लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके माता-पिता इसके वियोग में  तड़प-तड़प कर मर जाएंगे. माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया. शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया. शिक्षा समाप्त कर बालक अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया. तब उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को उनके साथ विदा किया.

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