जाने क्या है करवा चौथ व्रत की पूजन विधि Karva Chauth fast worship method

करवा चौथ व्रत का महत्व व पूजन विधि किस तरह करें करवा चौथ पूजा What kind of Karwa Chauth or worship

करवा चौथ हिन्दू का प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार भारत के कई राज्यो में धूम-धाम से मनाया जाता है. यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. आमतौर पर इस पर्व को सुहागिन महिलाये मनाती है. इस दिन सभी सुहागिन महिलाये अपने पति की लम्बी उम्र तथा परिवार के कल्याण के लिए रखती है. अधिकतर महिलाये इस व्रत को निर्जला रखती है. आजकल लड़किया भी इस व्रत को रखती हैं ताकि उन्हें अच्छा वर मिल सके. करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होता है तथा रात में चंद्रमा को देखने के बाद ही इस व्रत को खोलती हैं.

जाने क्या है करवा चौथ व्रत कथा 

करवा चौथ के लिए आवश्यक सामग्री The essential Materials of Karwa Chauth

करवा चौथ के व्रत को रखने के लिए कुछ आवश्यक सामग्री की आवश्यकता पड़ती है. इस सामग्री के बिना यह व्रत पूर्ण करना कठिन होता है.

करवा चौथ कि किताब – करवा चौथ के दिन करवा चौथ की कथा पड़ना जरुरी होता है इसलिए जिन महिलाओ को यह कथा याद ना हो वह लोग इस किताब से कथा पड़ सकते हैं. इस कथा को घर की कोई बुजुर्ग महिला या फिर पंडित जी द्वारा पढ़ाया जाता है. यदि यह सम्भव ना हो सके आप इस कथा को स्वयं या किसी कन्या के द्वारा भी पढ़ा सकते हैं.

पूजा थाली – इस व्रत को पूरा करने के लिए पूजा की थाली का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है. इसलिए पूजा की थाली में रोली, चावल, पानी से भरा करवा लोटा, मिठाई, दिया और सिंदूर, स्‍टील की छननी और लाल धागा रखें.

करवा – काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर रख लें. अब इस मिटटी को तांबे के करवा में रखें.

श्रृंगार वस्‍तुएं – करवा चौथ के दिन आप पूरा श्रृंगार का सामान इकत्रित कर लें तथा हाथो में मेहँदी व चुडिया पहने.

पूजन विधि – पूजन विधि करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाये. अब इस वेदी में शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा जी की स्थापना करें. अब इन देवो का पूजन करें.

खाने की वस्‍तुएं- करवा चौथ के दिन आप घर में अलग-अलग प्रकार की मिठाईया बना सकते हैं तथा कचौड़ी, सब्‍जी और अन्‍य व्‍यंजन भी बना सकते हैं.

चन्द्रोदय समय (Karwa Chauth Puja Timings in Hindi)

करवा चौथ का व्रत चन्द्रमा को अर्घ्य देकर की खोलना चाहिए. यह शुभ माना जाता है. इस व्रत को बिना चाँद के निकलने नही खोलना चाहिए. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह अशुभ माना जाता है.

साल 2016 में करवा चौथ के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त – शाम 05 बजकर 43 मिनट से लेकर 06 बजकर 59 मिनट तक

  • करवा चौथ के दिन चंद्रोदय – रात 8:51 बजे
  • करवा चौथ व्रत तिथि – 19 अक्टूबर 2016

करवा चौथ व्रत विधि (Karwa chauth Puja vidhi)

करवा चौथ व्रत को विधि अनुसार करना ही शुभ माना जाता है. यह व्रत सुहागिनों तथा कन्याओ के लिए शुभ माना जाता है. नारद पुराण में बताया गया है की इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए.

  • करवा चौथ का व्रत रखने के लिए सूर्योदय से पहले नहा-धोकर सास द्वारा भेजी गई सरगी खाएं. सरगी में सास द्वारा मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी और साज-श्रंगार दिया जाता है. इस दिन आप लहसुन या प्याज जैसे भोजन को ना करें. इसके बाद पूरा दिन अपने मन में मां पार्वती, महादेव शिव व गणेश जी का ध्यान करते रहें.
  • अपने घर की दिवार पर गेरू से फलक बनाये तथा इसमें चावलों के घोल से करवा का चित्र बनाये. यह बहुत ही पुरानी परम्परा है.
  • अब आठ पुरिया बना तथा हलवा बनाये. इसे अठावरी भी कहा जाता है.
  • इसके बाद पीली मिट्टी से मां गौरी और गणेश जी को चित्रित करें. यह चित्र शाम के समय पूरा करने के काम आते हैं.
  • अब माता पार्वती को लकड़ी के सिंहासन पर विराजमान करें. इसके बाद उन्हें लाल रंग की चुनरी पहनाये तथा उन्हें अन्य सुहाग का सामान अर्पित करें. इसके बाद माता के सामने जल से भरा हुआ कलश रख दें.
  • इसके बाद माता गौरी व गणेश जी की पूजा करें तथा मन्त्र का उच्चारण करें.

नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’

इस व्रत की कथा तथा पूजा की विधि हर जगह अलग-अलग प्रकार की होती है.

  • अब एक मिटटी का करवा लें तथा इसमें 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें. अब इसके ढक्कन में शक्‍कर का बूरा रखें. अब रोली से कर्वे पर स्‍वास्तिक का चिन्ह बनाये.
  • अब आप करवे की कहानी कह सकती हैं या फिर सुन सकती हैं. कथा पूर्ण होने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सास के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें.
  • अब शाम को चन्द्रमा के निकलने के बाद आप छननी द्वारा चाँद के दर्शन करें तथा उसे अर्घ्य प्रदान करें. अब आप अपने पति के पैरो को छुए तथा उनसे आशीर्वाद लें तथा पति के हाथों से ही पानी पीकर अपना व्रत खोलें. इस व्रत का सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए.
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